मैक्रो, स्मॉल और मीडियम इंटरप्राइस की टर्नओवर के हिसाब से परिभाषा तय करने के लिए सरकार ने आज लोकसभा में एक बिल पेश किया है। मैक्रो, स्मॉल एंड मीडियम इंटरप्राइजेस डेवलपमेंट (अमेंडमेंट) बिल के माध्यम से इन कारोबारियों की परिभाषा को नए सिरे से तय किया जाएगा।
अभी अलग है तरीका
अभी मैक्रो, स्मॉल एंड मीडियम इंटरप्राइस (MSMEs) की कैटेगरी तय करने के लिए प्लांट और मशीनरी में निवेश व वार्षिक टर्नओवर को देखा जाता है। नई परिभाषा तैयार करने के लिए इस बिल को आज MSMEs मामलों के राज्य मंत्री गिरिराज सिंह ने पेश किया। इस दौरान सरकार ने 2015 में पेश बिल को वापस भी लिया।
अब ऐसे तय होगी परिभाषा
इस बिल के अनुसार जिन कारोबारियों का टर्नओवर 5 करोड़ रुपए तक होगा, उनको मैक्रो इंटरप्राइज कहा जाएगा। 5 करोड़ रुपए से लेकर 75 करोड़ रुपए के बीच के कारोबारी को स्मॉल इंटरप्राइज कहा जाएगा। वहीं 75 करोड़ रुपए से ज्यादा और 250 करोड़ रुपए तक के कारोबारियों को मीडियम इंटरप्राइजेस कहा जाएगा।
ये है नया बिल लाने का कारण
मंत्री ने कहा कि नया बिल लाने की जरूरत इसलिए पड़ी कि पहले परिभाषा तय करने का तरीका कठिन था। उनके अनुसार कारोबारियों का कहना था कि प्लांट और मशीनरी में निवेश के वेरिफिकेशन के लिए उनको फीस देनी होती थी। यह कॉस्ट उनके कारोबार पर काफी ज्यादा थी। इसी कारण परिभाषा का स्पष्ट किया गया है। उन्होंने बताया कि इससे पहले 2006 में MSME एक्ट लाया गया था। इस एक्ट में इस सेक्टर को प्रमोट करने के लिए कई उपाए किए गए थे। उन्होंने कहा कि इस नए बिल से प्रमोटर को निवेश के लिए उत्साहित किया जाएगा।
नई परिभाषा से होगी आसानी
उन्होंने कहा कि जब हम लोग इस सेक्टर के लिए नई परिभाषा तय कर रहे थे तो कई सुझाव मिले थे, लेकिन टर्न ओवर के हिसाब से यही सबसे अच्छा पाया गया। इसमें कारोबारी के जीएसटीएन नेटवर्क से भी डाटा का मिलान करना आसान होगा। उन्होंने कहा कि इस नए तरीके से ईज ऑफ डूईंग बिजनेस को भी बढ़ावा मिलेगा।
No comments:
Post a Comment